गुरुवर श्री लक्ष्मीनारायण जी महाराज ने अपने प्रथम गुरु , विभीषण जी ( भक्ति के आचार्य ) की वन्दना करते हुए इस प्रथम भजन की रचना की : श्री कुबेर के कनिष्ठ भ्राता धर्म नीति दर्शाने वाले , बुद्धि बृहस्पति के सम जिनकी वानर कुल हर्षाने वाले । रामचन्द्र के सखा सुहाने लंका नगरी ढाने वाले , ब्रह्मा जी से मनवांछित भक्ति वरदान के पाने वाले । निवेदन - ब्लाग पढ रहे सभी सज्जनों से निवेदन है कि इन पंक्तियों का धर्म सम्मत विश्लेषण करने की कृपा करें ।
करुणामय निष्काम प्रेम प्रभुता से भक्त बनाने वाले , कल्कि की भक्ति वितरणकर आश की ज्योति जगाने वाले । अधर्म से थी घृणा सदा शुभप्रद उपदेश सुनाने वाले, मुझ जैसे विचलित प्राणी को अमर मार्ग में लाने वाले । निवेदन - ब्लाग पढ रहे सभी सज्जनों से निवेदन है कि इन पंक्तियों का धर्म सम्मत विश्लेषण करने की कृपा करें ।
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